Sri Granth: Sri Guru Granth Sahib
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Sri Guru Granth Sahib Page # :    of 1430
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ਗਾਵੈ ਕੋ ਵੇਖੈ ਹਾਦਰਾ ਹਦੂਰਿ  

गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥  

Gaavæ ko vékʰæ haaḋraa haḋoor.  

Some sing that He is beholding us just face to face.  

लेकिन कोई कहता है, ‘(नहीं, पास है), हर जगह मौजूद है, सब देख रहा है’।
हादरा हदूरि = सब जगह हाजिर, हाज़र नाज़र।


ਕਥਨਾ ਕਥੀ ਆਵੈ ਤੋਟਿ  

कथना कथी न आवै तोटि ॥  

Kaṫʰnaa kaṫʰee na aavæ ṫot.  

There is no dearth of persons who dwell upon the Lord’s discourses.  

(हरि) का हुक्म वर्णन करने की कोई कमी नहीं (यानी, आदेश का वर्णन करके उस का अंत नहीं पाया जा सकता);
कथना = कहना, बयान करना। कथना तोटि = कहने का अंत, गुण वर्णन करने का अंत।


ਕਥਿ ਕਥਿ ਕਥੀ ਕੋਟੀ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ  

कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥  

Kaṫʰ kaṫʰ kaṫʰee kotee kot kot.  

Millions give millions upon millions of descriptions and sermons regarding God.  

यद्यपि करोड़ों प्राणियों ने (प्रभु की आज्ञा का) अनन्त वर्णन किया है।
कथि = कह के। कथ कथ कथी = कह कह के कही है, बेअंत बार प्रभु के हुकमों का वर्णन किया है। कोटि = करोड़ो जीवों ने। ❀{नोटः लफ्ज़ कोटि, कोटु व कोट का निर्णय: कोटि = करोड़ (विशेषण)। कोटु = किला (संज्ञा एकवचन)। कोट = किले (संज्ञा, बहुवचन)}।


ਦੇਦਾ ਦੇ ਲੈਦੇ ਥਕਿ ਪਾਹਿ  

देदा दे लैदे थकि पाहि ॥  

Ḋéḋaa ḋé læḋé ṫʰak paahi.  

The Giver continues giving but the recipients grow weary of receiving.  

दातार प्रभु (सभी प्राणियों को रिजाक) दे रहा है, लेकिन जीव इसे लेते-लेते थक जाते हैं।
देदा = देंदा, देने वाला, दातार ईश्वर। दे = (सदा) देता है, दे रहा है। लैदे = लैंदे, लेने वाले जीव। थक पाहि = थक जाते हैं।


ਜੁਗਾ ਜੁਗੰਤਰਿ ਖਾਹੀ ਖਾਹਿ  

जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥  

Jugaa juganṫar kʰaahee kʰaahi.  

All the ages through the partakers partake of His provision.  

(सभी जीव) अनादि काल से (ईश्वर प्रदत्त वस्तुएं) खाते आ रहे हैं।
जुगा जुगंतरि = जुग जुग अंतर, सारे युगों से, सदा से ही। खाही खाहि = खाते ही खाते हैं, इस्तेमाल करते आ रहे हैं।


ਹੁਕਮੀ ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਏ ਰਾਹੁ  

हुकमी हुकमु चलाए राहु ॥  

Hukmee hukam chalaa▫é raahu.  

The Commander, by His command, makes man walk on His path.  

यह हुकम करने वाले ईश्वर (दुनिया की कार) का आदेश है जो सृष्टि चल रही है।
हुकमी = हुक्म का मालिक अकाल-पुरुष। हुकमी हुकमु = हुक्म वाले ईश्वर का हरि का हुक्म। राहु = रास्ता, संसार की कार।


ਨਾਨਕ ਵਿਗਸੈ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥੩॥  

नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥  

Naanak vigsæ véparvaahu. ||3||  

O Nanak! The carefree Master makes merry.  

हे नानक! वह हमेशा लापरवाह और खुश रहता है।3।
नानक = हे नानक। विगसै = खिल रहा है, प्रसंन्न है। वेपरवाहु = बेफिक्र, चिन्ता से रहित।3।


ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਾਚੁ ਨਾਇ ਭਾਖਿਆ ਭਾਉ ਅਪਾਰੁ  

साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥  

Saachaa saahib saach naa▫é bʰaakʰi▫aa bʰaa▫o apaar.  

True is the Lord, true His Name and the true have repeated His Name with infinite love.  

प्रभु शाश्वत है, उसका विधान भी शाश्वत है। उसकी भाषा प्रेम है और वह स्वयं अनंत है।
साचा = अस्तित्व वाला, सदा स्थिर रहने वाला। साचु = सदा स्थिर रहने वाला। नाइ = न्याय, इंसाफ, संसार के कार्य को चलाने का नियम। भाखिआ = बोली। भाउ = प्रेम। अपार = पार से रहित, बेअंत। ❀(नोट: ‘साचु नाइ’ बरे में। व्याकरण का नियम है कि किसी भी संज्ञा के विशेषण का वही ‘लिंग’ होता है, जो उस ‘संज्ञा’ का है। ‘साचु नाइ’ वाली तुक में ‘साहिबु’ पुलिंग है, इसलिए ‘साचा’ भी पुलिंग है। ‘साचु’ पुलिंग है, सो, जिस संज्ञा का यह विशेषण है, वह भी पुल्रिंग ही चाहिए। जैसे कि ‘साहिबु’ है। शब्द ‘नाउ’ जब तक ‘कर्ता कारक’ या ‘कर्म कारक’ के साथ इस्त्रमाल होता है, तब तक इसका स्वरूप यही रहता है, जैसेकि, अंम्रित वेला सचु नाउ वडिआई विचारु। चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ। जेता कीता तेता नाउ। (पउड़ी 19)। उचै ऊपरि ऊचा नाउ। (पउड़ी 24)। यही ‘शब्द ‘नाउ’ जपु जी में एक बार और आया है, पर वह ‘क्रिया’ है और उसका अर्थ है ‘स्नान करो’। जैसे कि; ❀अंतरगति तीरथ मलि नाउ। (पउड़ी 21)। शब्द ‘नाउ’ का बहुवचन जपु जी में दो बार आया है, उसका रूप ‘नांव’ है, जैसे; ❀असंख नाव असंख थाव। (पउड़ी 19)। जीअ जाति रंगा के नाव। (पउड़ी 16)। जब शब्द ‘नाउ’ कर्ता कारक या कर्म कारक के बिना और किसी कारक में इस्तेमाल हो, तो ‘नाउ’ की जगह ‘नाइ’ हो जाता है, जैसे; नाइ तेरै तरणा नाइ पति पूज। नाउ तेरा गहणा मति मकसूद। (परभाती बिभास महला १)। ❀नाइ = नाम के द्वारा। पर ‘साचि नाइ’ वाला ‘नाइ’ कर्ता कारक ही हो सकता है, क्योंकि इसका विशेषण ‘साचु’ भी कर्ता कारक है। ये ‘नाइ’ उपरोक्त प्रमाण वाले ‘नाइ’ से अलग है। जपुजी की पउड़ी ६ की पहिली तुकमें भी ‘नाइ’ शब्द मिलता है, पर यहाँ ‘क्रिया’ है, इसका अर्थ है ‘नहा के’। यो, ये ‘नाइ’ भी ‘साचु नाइ’ वाला नहीं है। शब्द ‘नाई’ भी जपुजी में निम्न-लिखित तुकों में इस्तेमाल किया गया है; ❀वडा साहिब, वडी नाई, कीता जा का होवै। (पउड़ी 21)। सोई सोई सदा सचु, साहिब साचा, साची नाई। (पउड़ी 27)। यहां, शब्द ‘नाई’ स्त्रीलिंग है। इसलिए ये शब्द भी ‘साचु नाइ’ से अलग है। हमने इस शब्द ‘नाइ’ का अर्थ ‘निआइ’ किया है। इसी तरह नीचे दी गयीं तुकों में भी ‘नाई’ से ‘निआई’ पाठ वाला अर्थ करना है। ‘बुत पूज पूज हिंदू मुए तुरक मूए सिरु नाई। (सोरठि कबीर जी) ‘नाई’ व ‘निआई’ का अर्थ है ‘नियाइ’ (झुकना?) आजकल की पंजाबी में भी ‘निआइ’, ‘नीची जगह’ को कहा जाता है। सो, जैसे इस प्रमाण में ‘नाई’ को ‘निआई’ समझ के अर्थ किया जाता है, उसी प्रकार इस लफ्ज़ ‘नाइ’ को ‘निआइ’ (नियम) ही समझना है।


ਆਖਹਿ ਮੰਗਹਿ ਦੇਹਿ ਦੇਹਿ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਦਾਤਾਰੁ  

आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु ॥  

Aakʰahi mangahi ḋéhi ḋéhi ḋaaṫ karé ḋaaṫaar.  

People pray and beg: “give us alms, give us alms”, and the bestower bestows His gifts.  

हम प्राणी उनसे उपहार मांगते हैं और कहते हैं, ‘हे हरि! हमें उपहार दो!’ और वह बहुत उपहार करता है।
आखहि = हम कहते हैं। मंगहि = हम मांगते हैं। देहि देहि = (हे हरी भगवान!) हमें देह, हम पे बख्शिश कर।


ਫੇਰਿ ਕਿ ਅਗੈ ਰਖੀਐ ਜਿਤੁ ਦਿਸੈ ਦਰਬਾਰੁ  

फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु ॥  

Fér kė agæ rakʰee▫æ jiṫ ḋisæ ḋarbaar.  

Then, what should be placed before His where-by His court may be seen?  

(यदि वह स्वयं ही सभी उपहार दे रहा है) तो हमें अकाल-पुरुष के सामने क्या भेंट रखनी चाहिए, जिसकी कृपा से हमको उसका दरबार दिख जाये?
फेरि = (अगर सारी दातें वह स्वयं ही कर रहा है) फिर। कि = कौन सी भेंट। अगै = रब के आगे। रखीऐ = रखी जाए, हम रखें। जितु = जिस भेटा के सदके। दिसै = दिख जाए।


ਮੁਹੌ ਕਿ ਬੋਲਣੁ ਬੋਲੀਐ ਜਿਤੁ ਸੁਣਿ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ  

मुहौ कि बोलणु बोलीऐ जितु सुणि धरे पिआरु ॥  

Muhou kė bolaṇ bolee▫æ jiṫ suṇ ḋʰaré pi▫aar.  

Which words should we utter with our mouths by hearing which, He may begin to bear us love?  

हम कौन सा शब्द कहें (अर्थात कौन सी प्रार्थना करें) जिसे सुनकर वह हरि (हमसे) प्रेम करें।
मुहौ = मुँह से। कि बोलणु = कौन सा वचन? जितु सुणि = जिस द्वारा सुनके। धरे = टिका दे, कर दे। जितु = जिस बोल द्वारा।


ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲਾ ਸਚੁ ਨਾਉ ਵਡਿਆਈ ਵੀਚਾਰੁ  

अमृत वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥  

Amriṫ vélaa sach naa▫o vadi▫aa▫ee veechaar.  

Early in the morning utter the True Name and reflect upon God’s greatness.  

प्रातःकाल हो, उसका नाम स्मरण करो, और उसकी महिमा का विचार करें!
अंम्रित = कैवल्य, निर्वाण, मोक्ष, पूर्ण खिलाव। अंम्रित वेला = अमृत की बेला, पूर्ण खिड़ाव का समय, वह समय जिस वक्त मानव मन आम तौर पे संसार के झमेलों से मुक्त होता है, सुबह, प्रभात। सचु = सदा स्थिर रहने वाला। नाउ = ईश्वर का नाम। वडिआई विचारु = ईश्वर के बड़प्पन की विचार।


ਕਰਮੀ ਆਵੈ ਕਪੜਾ ਨਦਰੀ ਮੋਖੁ ਦੁਆਰੁ  

करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु ॥  

Karmee aavæ kapṛaa naḋree mokʰ ḋu▫aar.  

By Good actions the physical robe is obtained and by the Lord’s benediction the gate of salvation.  

(इस प्रकार) प्रभु की कृपा से ‘महिमा’ का अंश प्राप्त होता है और उनकी कृपा से ‘झूठ के परदे’ से मुक्ति मिलती है और परमात्मा का दर प्राप्त होता है।
करमी = प्रभु की मेहर, करम से। करम = बख्शिश, मेहर। ❀(जैसे: जेती सिरठि उपाई वेखा, विणु करमा कि मिले लई। (पउड़ी 9)। नानक नदरी करमी दाति। (पउड़ी 14)। कपड़ा = पटोला, प्रेम पटोला, अपार भाउ-रूप पटोला, प्यार-रूप पटोला, महिमा का कपड़ा। ❀जैसे: ”सिफति सरम का कपड़ा मागउ”।7। प्रभाती म: १। ❀नदरी = रब की मेहर से। मोक्ष = मुक्ति, ‘झूठ’ से खलासी। दुआरु = दरवाजा, रब का दर।


ਨਾਨਕ ਏਵੈ ਜਾਣੀਐ ਸਭੁ ਆਪੇ ਸਚਿਆਰੁ ॥੪॥  

नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु ॥४॥  

Naanak évæ jaaṇee▫æ sabʰ aapé sachiaar. ||4||  

Know thus, O Nanak! That the True One is all by Himself.  

हे नानक! इस तरह, यह समझ आ जाती है कि अस्तित्व के स्वामी, हरि, हर जगह (प्रचुर मात्रा में) हैं।4।
एवै = इस तरह (इन कोशिशों व अकाल-पुरुष की कृपा द᳗ष्टि होने से)। जाणीऐ = जान लेते हैं, अनुभव कर लेते हैं। सभु = सब जगह। सचिआरु = अस्तित्व का घर, हस्ती की मालिक। ❀(नोट: लफ्ज़ ‘एवै’ प्रगट करता है कि इस पउड़ी की तीसरी और चौथी तुक मेंकिए गए प्रश्न का उत्तर अगली तीन तुकों में है: अगर अमृत वेले ईश्वर के बड़प्पन का विचार करें तो उसकी मेहर से सदा महिमा-रूप कपड़ा मिलता हैऔर वह प्रभु हर जगह दिखने लगता है)।4।


ਥਾਪਿਆ ਜਾਇ ਕੀਤਾ ਹੋਇ  

थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥  

Ṫʰaapi▫aa na jaa▫é keeṫaa na ho▫é.  

He is neither established nor created by any one.  

यह न तो बनाया जा सकता है और न ही हमारे करने से कुछ होता (बनता) है।
थापिआ ना जाइ = बनाया नहीं जा सकता, स्थापित नहीं किया जा सकता। ❀{संस्कृत धातु स्था का अर्थ है ‘खड़े होना’। इससे प्रेणार्थक धातु है ‘स्थापय’, जिसका अर्थ है खड़ा करना, नींव रखनी। इस ‘प्रेणार्थक धातु’ से ‘संज्ञा’ बनी है स्थापन, जिसका अर्थ है ‘पुंसवन संस्कार’। स्त्री के गर्भवती होने की जब पहिली निशानियां प्रगट होतीं हैं, तो हिंदू घरों में ये संस्कार किया जाता है ता कि पुत्र का जन्म हो। स्थाप्य से पहले उद् लगाने से ये बन जाता है, उत्थाप्य, जिसका अर्थ उसके उलट है: उखाड़ना, नाश करना। जैसे कि: आपे देखि दिखावै आपे। आपे थापि उथापे आपे। (म: १)}। कीता न होइ = (हमारे) बनाए नहीं बनता। न होइ = अस्तित्व में नहीं आता।


ਆਪੇ ਆਪਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਇ  

आपे आपि निरंजनु सोइ ॥  

Aapé aap niranjan so▫é.  

That Pure One is all in all Himself.  

वह प्रभु जो माया के प्रभाव से परे है, स्वयं ही है।
आपे आपि = स्वयं ही, भाव, ना उसे कोई पैदा करने वाला और ना ही कोई बनाने वाला है। सोइ निरंजनु = अंजन से रहित वो हरि। निरंजन = अंजन से रहित, माया से रहित, जो माया से नहीं बना, जिस में माया का अंश नहीं (निर+अंजन, निर = बिना। अंजन = सुर्मा, कालिख, विकारों की अंश, माया का प्रभाव नहीं है, वह जिस पर माया का प्रभाव नहीं है।)


ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨਿ ਪਾਇਆ ਮਾਨੁ  

जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु ॥  

Jin sévi▫aa ṫin paa▫i▫aa maan.  

They who serve Him, obtain honour.  

जिसने उस अकाल-पुरुष को याद (का स्मरण) किया है, उसने वैभव प्राप्त कर लिया है।
जिनि = जिस मनुष्य ने। तिनि = उस मनुष्य ने। मानु = आदर, सत्कार।


ਨਾਨਕ ਗਾਵੀਐ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ  

नानक गावीऐ गुणी निधानु ॥  

Naanak gaavee▫æ guṇee niḋʰaan.  

O Nanak! Sing praises of the Lord who is the treasure of excellences.  

हे नानक! (आइए) उन गुणों के खजाने हरि की स्तुति करें।
गुणी निधानु = गुणों के खजाने को। गावीऐ = महिमा करिए।


ਗਾਵੀਐ ਸੁਣੀਐ ਮਨਿ ਰਖੀਐ ਭਾਉ  

गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥  

Gaavee▫æ suṇee▫æ man rakʰee▫æ bʰaa▫o.  

With the Lord’s love reposed in thy heart sing and hear His praises.  

आइए हम (प्रभु के गुणों) को गाएं और सुनें और अपने मन में उनका प्यार पैदा करें।
मनि = मन में। रखीऐ = टिकाएं। भाऊ = प्रभू का प्रिये।


ਦੁਖੁ ਪਰਹਰਿ ਸੁਖੁ ਘਰਿ ਲੈ ਜਾਇ  

दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ ॥  

Ḋukʰ par▫har sukʰ gʰar læ jaa▫é.  

Thus, shalt thou shed pain and shalt take happiness to thy home.  

(ऐसा कहने वाला आदमी) अपने दुख को दूर करता है और अपने में सुख हासिल करता है।
दुखु परहरि = दुख को दूर करके। घरि = हृदय में। लै जाइ = ले के जाता है, कमाई कर लेता है।


ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਦੰ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੇਦੰ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ  

गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई ॥  

Gurmukʰ naaḋaⁿ gurmukʰ véḋaⁿ gurmukʰ rahi▫aa samaa▫ee.  

Gurbani is the Divine Word, Gurbani the Lord’s Knowledge and through Gurbani the Lord is realised to be all pervading.  

(लेकिन उस परमात्मा का) नाम और ज्ञान गुरु के माध्यम से प्राप्त होता है। गुरु के माध्यम से ही (ऐसा प्रतीत होता है कि) हर जगह हरि फैला हुआ है।
गुरमुखि = गुरु की ओर मुंह करने से, जिस मनुष्य का मुंह गुरु की ओर है, गुरु के द्वारा। नादं = आवाज, शब्द, नाम, जिंदगी की रुमक। वेदं = ज्ञान। रहिआ समाई = समाया हुआ है, सर्व व्यापक है।


ਗੁਰੁ ਈਸਰੁ ਗੁਰੁ ਗੋਰਖੁ ਬਰਮਾ ਗੁਰੁ ਪਾਰਬਤੀ ਮਾਈ  

गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥  

Gur eesar gur gorakʰ barmaa gur paarbaṫee maa▫ee.  

The Guru is Shiva, the Guru Vishnu and Brahma, the Guru is Shiva’s consort Parbati, Vishnu’s consort Lakhshmi and Brahma’s consort Saraswati.  

गुरु (हमारे लिए) शिव हैं, गुरु गोरख और ब्रह्मा हैं और गुरु (हमारे लिए) माई पार्वती हैं।
ईसरु = शिव। बरमा = ब्रह्मा। पारबती माई = माँ पार्वती।


ਜੇ ਹਉ ਜਾਣਾ ਆਖਾ ਨਾਹੀ ਕਹਣਾ ਕਥਨੁ ਜਾਈ  

जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥  

Jé ha▫o jaaṇaa aakʰaa naahee kahṇaa kaṫʰan na jaa▫ee.  

Even though I Know God, I cannot narrate Him, He cannot be described by words.  

हालांकि, अगर मैं (इस अकाल-पुरुष के आदेश) को समझता हूँ, तो मैं इसका वर्णन नहीं कर सकता। (प्रभु का आदेश) नहीं कहा जा सकता।
हउ = मैं। जाणा = समझ लूँ, अनुभव कर लूँ। आखा नाही = मैं उसका वर्णन नही कर सकता। कहणा.......जाई = कथन कहा नहीं जा सकता।


ਗੁਰਾ ਇਕ ਦੇਹਿ ਬੁਝਾਈ  

गुरा इक देहि बुझाई ॥  

Guraa ik ḋéhi bujʰaa▫ee.  

The Guru has explained one thing to me.  

(मेरे) हे सतगुरु! (मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ) मुझे एक समझ दें,
गुरा = हे सत्गुरू! इक बुझाई = एक समझ।


ਸਭਨਾ ਜੀਆ ਕਾ ਇਕੁ ਦਾਤਾ ਸੋ ਮੈ ਵਿਸਰਿ ਜਾਈ ॥੫॥  

सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥  

Sabʰnaa jee▫aa kaa ik ḋaaṫaa so mæ visar na jaa▫ee. ||5||  

There is but one Bestower for all the beings May, I never forget Him.  

कि मैं उस एक ईश्वर को न भूले जो सभी जीवों को उपहार देता है।5।
इकु दाता = दातें देने वाला एक प्रभु। विसरि न जाई = भूल ना जाए। ❀(नोट: यहाँ शब्द ‘इक’ स्त्रीलिंग है और शब्द ‘बुझाई’ का विशेषण है। शब्द ‘इकु’ पुलिंग है और शब्द ‘दाता’ का विशेषण है। दोनों शब्दों के जोड़ों का फर्क याद रखना होगा)।5।


ਤੀਰਥਿ ਨਾਵਾ ਜੇ ਤਿਸੁ ਭਾਵਾ ਵਿਣੁ ਭਾਣੇ ਕਿ ਨਾਇ ਕਰੀ  

तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी ॥  

Ṫiraṫʰ naavaa jé ṫis bʰaavaa viṇ bʰaaṇé kė naa▫é karee.  

If I become pleasing to Him that is my pilgrimage bath. Without pleasing Him of what avail is the ablution?  

मैं तीर्थ यात्रा पर जा करके स्नान करूंगा यदि ऐसा करके भगवान को प्रसन्न कर सकता हूँ, लेकिन यदि भगवान इस तरह प्रसन्न नहीं हैं, तो मैं स्नान (तीर्थ यात्रा पर) करके क्या करूंगा?
तीरथि = तीर्थ पे। नावा = मैं स्नान करूँ। तिसु = उस रब को। भावा = मैं अच्छा लगूँ। विणु भाणे = अगर रब की नजर में स्वीकार ना हुआ, ईश्वर को ठीक लगे बिना। कि नाइ करी = स्नान करके मैं करूँ?


ਜੇਤੀ ਸਿਰਠਿ ਉਪਾਈ ਵੇਖਾ ਵਿਣੁ ਕਰਮਾ ਕਿ ਮਿਲੈ ਲਈ  

जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई ॥  

Jéṫee siratʰ upaa▫ee vékʰaa viṇ karmaa kė milæ la▫ee.  

All the created beings, that I behold, without good acts what are they given and what do they obtain?  

प्रभु द्वारा रची गई दुनिया को मैं जो भी देखता हूँ, प्रभु कृपा के बगैर उसमें किसी को कुछ नहीं मिलता (यानी, ईश्वर की कृपा के बिना कोई कुछ नहीं ले सकता)।
जेती = जितनी। सिरठी = सृष्टि, दुनिया। उपाई = पैदा की हुई। वेखा = मैं देखता हूँ। विणु करमा = प्रभु की मेहर के बिना। ❀{जैसे: ‘विणु करमा किछु पाईऐ नाही, जे बहु तेरा धावै’ (तिलंग महला १)} कि मिलै = क्या मिलता है? कुछ नहीं मिलता। कि लई = क्या कोई ले सकता है?


ਮਤਿ ਵਿਚਿ ਰਤਨ ਜਵਾਹਰ ਮਾਣਿਕ ਜੇ ਇਕ ਗੁਰ ਕੀ ਸਿਖ ਸੁਣੀ  

मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥  

Maṫ vich raṫan javaahar maaṇik jé ik gur kee sikʰ suṇee.  

In the mind are gems, jewels and rubies, provided thou you act upon (hearken to) even one instruction of the Guru.  

यदि सतगुरु की शिक्षाओं में से एक को सुना जाए तो मनुष्य की बुद्धि में रत्न, जवाहर और मोती उदय हो जाते हैं (अर्थात् ईश्वर के गुणों का जन्म होता है)।
मति विचि = (मनुष्य की) बुद्धि में। माणिक = मोती। इक सिख = एक शिक्षा। सुणी = सुनी जाए, सुनें।


ਗੁਰਾ ਇਕ ਦੇਹਿ ਬੁਝਾਈ  

गुरा इक देहि बुझाई ॥  

Guraa ik ḋéhi bujʰaa▫ee.  

The Guru has explained one thing to me.  

(इसलिए) हे सतगुरु! (मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि) मुझे यह समझ दें,
xxx


ਸਭਨਾ ਜੀਆ ਕਾ ਇਕੁ ਦਾਤਾ ਸੋ ਮੈ ਵਿਸਰਿ ਜਾਈ ॥੬॥  

सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥  

Sabʰnaa jee▫aa kaa ik ḋaaṫaa so mæ visar na jaa▫ee. ||6||  

There is but one Bestower for all the beings. May, I never forget Him.  

ताकि मैं अकाल-पुरुष को न भूल सकूं जो सभी जीवों को उपहार देता है।6।
xxx।6।


ਜੇ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਆਰਜਾ ਹੋਰ ਦਸੂਣੀ ਹੋਇ  

जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होइ ॥  

Jé jug chaaré aarjaa hor ḋasooṇee ho▫é.  

Though a man’s age be equal to four ages and grow even ten times more,  

यदि किसी व्यक्ति की आयु चार जग जितनी हो जाये, (केवल इतना ही नहीं, लेकिन अगर) यह दस गुना अधिक (आयु) हो जाती है,
जुग चारे = चारों युगों जितनी। आरजा = उम्र। दसूणी = दस गुनी।


ਨਵਾ ਖੰਡਾ ਵਿਚਿ ਜਾਣੀਐ ਨਾਲਿ ਚਲੈ ਸਭੁ ਕੋਇ  

नवा खंडा विचि जाणीऐ नालि चलै सभु कोइ ॥  

Navaa kʰanda vich jaaṇee▫æ naal chalæ sabʰ ko▫é.  

Even though he be known in the nine continents and all were to walk with him (or follow in his train),  

यदि वह सारे जगत में प्रकट हो जाये, और हर एक मनुष्य उसके पीछे चलने लगे (यनि, उसको आगू माने),
नवा खंडा विचि = सारी सृष्टि में। जाणीऐ = जानी जाए, प्रगट हो जाए। सभ कोइ = हरेक मनुष्य। नालि चलै = साथ हो कर चले, हिमायती हो, पक्ष करता हो।


ਚੰਗਾ ਨਾਉ ਰਖਾਇ ਕੈ ਜਸੁ ਕੀਰਤਿ ਜਗਿ ਲੇਇ  

चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ ॥  

Changa naa▫o rakʰaa▫é kæ jas keeraṫ jag lé▫é.  

and he were to assume good name and obtain praise and renown in the world.  

यदि वे अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित कर के पूरी दुनिया में महिमा प्राप्त कर ले,
चंगा...कै = खूब मशहूर हो के, खूब नाम कमा के। जसु = शोभा। कीरति = शोभा। जगि = जगत में। लेइ = ले, कमाए।


ਜੇ ਤਿਸੁ ਨਦਰਿ ਆਵਈ ਵਾਤ ਪੁਛੈ ਕੇ  

जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के ॥  

Jé ṫis naḋar na aavee ṫa vaaṫ na puchʰæ ké.  

If God’s gracious glance falls not one him, them, no one would care for him,  

(लेकिन) यदि अकाल-पुरुष की कृपा की नज़र में नहीं है, तो वह एक ऐसे व्यक्ति की तरह है जिसकी खबर कोई नहीं मांगता (अर्थात, अच्छी प्रतिष्ठा हासिल करने से भी वह वास्तव में न्यासारा है)।
तिसु = प्रभु की। नदरि = कृपा द᳗ष्टि में। न आवई = नहीं आ सकता। वात = खबर, सुर्त। न के = कोई मनुष्य नहीं।


ਕੀਟਾ ਅੰਦਰਿ ਕੀਟੁ ਕਰਿ ਦੋਸੀ ਦੋਸੁ ਧਰੇ  

कीटा अंदरि कीटु करि दोसी दोसु धरे ॥  

Keetaa anḋar keet kar ḋosee ḋos ḋʰaré.  

he is accounted a vermin amongst worms and even the sinners impute accusations to him.  

बल्कि ऐसे आदमी प्रभु को मामूली कीड़ा समझ करके (“खसमै नादरी कीड़ा आवै” आसा म: १) प्रभु उस आरोपी पर (नाम भूल जाने का) आरोप लगाता है।
कीटु = कीड़ा। करि = कर के, बना के, ठहिर के। दोसु धरे = दोश लगाता है। कीटा अंदरि कीटु = कीड़ों में कीड़ा, मामूली सा कीड़ा।


ਨਾਨਕ ਨਿਰਗੁਣਿ ਗੁਣੁ ਕਰੇ ਗੁਣਵੰਤਿਆ ਗੁਣੁ ਦੇ  

नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे ॥  

Naanak nirguṇ guṇ karé guṇvanṫi▫aa guṇ ḋé.  

O Nanak! God grants virtue to the non-virtuous and bestows piety on the pious.  

हे नानक! वह अकाल-पुरुष सदाचार रहित मनुष्य में सदाचार का संचार करता है और गुणी मनुष्यों को भी वही गुण देता है।
निरगुणि = गुणहीन मनुष्य में। गुणवंतिया = गुणी मनुष्यों को। करे = पैदा करता है। दे = देता है।


ਤੇਹਾ ਕੋਇ ਸੁਝਈ ਜਿ ਤਿਸੁ ਗੁਣੁ ਕੋਇ ਕਰੇ ॥੭॥  

तेहा कोइ न सुझई जि तिसु गुणु कोइ करे ॥७॥  

Ṫéhaa ko▫é na sujʰ▫ee jė ṫis guṇ ko▫é karé. ||7||  

I can think of no such one who can show any goodness unto Him.  

(प्रभु के बगैर) ऐसा कोई समझ में नहीं आता जो निर्गुण को कोई गुण देने वाला हो। (अर्थात्, केवल भगवान की कृपा की दृष्टि उसे ऊंचा कर सकती है, लंबी उम्र और दुनिया की प्रतिष्ठा मदद नहीं करती)।7।
तेहा = इस तरह का। न सुझई = नहीं सूझता, नहीं मिलता। जि = जो। तिसु = उस निर्गुण को।7।


ਸੁਣਿਐ ਸਿਧ ਪੀਰ ਸੁਰਿ ਨਾਥ  

सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ ॥  

Suṇi▫æ siḋʰ peer sur naaṫʰ.  

By hearing God’s Name the mortal becomes a perfect person, religious guide, spiritual hero and a great yogi.  

(प्रभु-नाम हृदय में बसने का वरदान है कि) प्रभु की स्तुति सुनकर (सामान्य लोग) सिद्ध, पीर, देवता और नाथ का दर्जा प्राप्त करते हैं
सुणिऐ = सुनने से, यदि नाम में सुकर को जोड़ा जाए। सिद्ध = वह योगी जिनकी मेहनत सफल हो चुकी है। सुरि = देवते।


ਸੁਣਿਐ ਧਰਤਿ ਧਵਲ ਆਕਾਸ  

सुणिऐ धरति धवल आकास ॥  

Suṇi▫æ ḋʰaraṫ ḋʰaval aakaas.  

By hearing God’s Name the reality of the earth, it’s supposed supporting bull and the heaven is revealed unto the mortal.  

और हरि की स्तुति सुनकर वे जान लेते हैं कि हरि पृथ्वी और आकाश का शरणस्थान है।
धवल = धरती का आसरा, बौलद।


ਸੁਣਿਐ ਦੀਪ ਲੋਅ ਪਾਤਾਲ  

सुणिऐ दीप लोअ पाताल ॥  

Suṇi▫æ ḋeep lo▫a paaṫaal.  

By hearkening to the Lord’s Name man comes to have the knowledge of the continents, the worlds and the nether regions.  

प्रभु की स्तुति सुनने से, यह समझ आ जाती है कि प्रभु सभी द्वीपों, लोगों और घाटियों में फैले हुए हैं।
दीप = धरती के विभाजन के सात द्वीप। लोअ = लोक, भवन।


ਸੁਣਿਐ ਪੋਹਿ ਸਕੈ ਕਾਲੁ  

सुणिऐ पोहि न सकै कालु ॥  

Suṇi▫æ pohi na sakæ kaal.  

By hearing the Lord’s Name death cannot torment (touch) the mortal.  

जो व्यक्ति प्रभु की स्तुति सुनता है, उसे मृत्यु का डर नहीं लगता (अर्थात मृत्यु उन्हें डरा नहीं सकती)।
पोहि न सकै = डरा नहीं सकता, अपना प्रभाव नहीं डाल सकता।


ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਸਦਾ ਵਿਗਾਸੁ  

नानक भगता सदा विगासु ॥  

Naanak bʰagṫaa saḋaa vigaas.  

O Nanak! The devotees ever enjoy happiness.  

हे नानक! भक्तों के दिलों में हमेशा खुशी रहती है (जो प्रभु के नाम में ध्यान लगाते हैं),
विगासु = उमाह, खुशी, खिड़ाउ।


ਸੁਣਿਐ ਦੂਖ ਪਾਪ ਕਾ ਨਾਸੁ ॥੮॥  

सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥८॥  

Suṇi▫æ ḋookʰ paap kaa naas. ||8||  

By hearing to the Master’s Name sorrow and sin meet with destruction.  

(क्योंकि) उसकी स्तुति सुनने से (मनुष्य के) दुःख और पाप नष्ट हो जाते हैं।8।
xxx।8।


ਸੁਣਿਐ ਈਸਰੁ ਬਰਮਾ ਇੰਦੁ  

सुणिऐ ईसरु बरमा इंदु ॥  

Suṇi▫æ eesar barmaa inḋ.  

By hearing the Lord’s Name the status of god of death, god of creation and god of rain is obtained.  

हरि की स्तुति सुनने से (नाम स्मरण करने से) आम आदमी शिव, ब्रह्मा और इंद्र के पद पर पहुंच जाता है,
ईसरु = शिव। इंदु = इंद्र देवता।


ਸੁਣਿਐ ਮੁਖਿ ਸਾਲਾਹਣ ਮੰਦੁ  

सुणिऐ मुखि सालाहण मंदु ॥  

Suṇi▫æ mukʰ saalaahaṇ manḋ.  

By hearing God’s Name even the evil come to sing Lord’s praises with their mouth.  

और हरि की स्तुति सुनने से (नाम स्मरण करने से) एक दुष्ट मनुष्य भी अपने मुँह से परमेश्वर की स्तुति करना शुरू कर देता है,
मुखि = मुंह से। सालाहण = महिमा, रब की स्तुति। मंदु = बुरा मनुष्य।


ਸੁਣਿਐ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਤਨਿ ਭੇਦ  

सुणिऐ जोग जुगति तनि भेद ॥  

Suṇi▫æ jog jugaṫ ṫan bʰéḋ.  

By hearing God’s Name the mortal understands the ways of uniting with the Lord and the body’s secrets.  

(साधारण बुद्धि वाला मनुष्य भी) हरि की स्तुति सुनने से (नाम स्मरण करने से) शरीर में छिपी ताकतों के रहस्य को जान जाता है (अर्थात् इंद्रियों की गति जैसे आंख, कान, जीभ आदि और विकारों की ओर भागना आदि),
जोग जुगति = योग की युक्ति, योग के साधन। तनि = शरीर के भीतर के। भेद = छुपी बातें।


ਸੁਣਿਐ ਸਾਸਤ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਵੇਦ  

सुणिऐ सासत सिम्रिति वेद ॥  

Suṇi▫æ saasaṫ simriṫ véḋ.  

By hearing the Lord’s Name the Knowledge of the four religious books, six school of philosophy and twenty seven ceremonial treatise is acquired.  

हरि की स्तुति सुनने से (नाम स्मरण करने से) ईश्वर-मिलन की जुगत तथा शास्त्रों, स्मृतियों और वेदों की समझ है (अर्थात धार्मिक पुस्तकों का वास्तविक उच्च लक्ष्य तभी समझ में आता है जब हम नाम से ध्यान जोड़ते हैं, अन्यथा हम केवल निर्दोष शब्दों को छोड़ देते हैं, वास्तविक भावना तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिसमें उन धार्मिक पुस्तकों का उच्चारण किया जाता है)।
xxx


ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਸਦਾ ਵਿਗਾਸੁ  

नानक भगता सदा विगासु ॥  

Naanak bʰagṫaa saḋaa vigaas.  

Ever blissful are the saints, O Nanak!  

हे नानक! भक्तों (जो नाम से प्यार करते हैं) के दिलों में हमेशा खुशी रहती है;
xxx


        


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